Jainism Religion History in India: From this page, you can read about Jainism Religion History and other Details. यह जानकारी आपको हिंदी में जी गई है। तो इस पेज को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए और पोस्ट को और जानिए इस विषय के बारे में बो भी in Hindi.
Jainism Religion Founder
चलिए जानते हैं जैन धर्म के बारे में। कौन थे इस धर्म के संस्थापक तथा क्या जीवनशैली थी इन लोगों की उस समय।
जैन धर्म के संस्थापक-
- जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे।
- जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए ऋषभदेव सबसे पहले तथा महाबीर 24वें जैन तीर्थंकर थे।
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर- महावीर
- महावीर जैन धर्म के 24वें व अन्तिम तीरर्थंकर थे
- उनका जन्म 540 ईसा पूर्व में कुण्डग्राम (वैशाली) में हुआ था।
- इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञातक कुल के सहदार थे तथा माता का नाम त्रिशला था जोकि राजा चेटक की बहन थी।
- महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था तथा इनके माता पिता की मृत्यु के समय इनकी उम्र मात्र 30 वर्ष थी।
- इन्होनें माता पिता की मृत्यु के बाद अपने बड़े भाई नंदिवर्मन से आज्ञा लेकर संन्यास जीवन स्वीकारा था।
- महावीर की पुत्री का नाम प्रिदर्शनी था तथा दामाद जमाली थे
- महावीर ने 12 वर्ष तक कठिन तपस्या की तथा 12 वर्षों के बाद उन्हें जृम्भिक के समीप ऋजु पालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए संपूर्ण ज्ञान का वोध हुआ।
- इसी समय से महावीर जिन अर्हत और निरग्रंथ कहलाए।
- महावीर ने अपना उपदेश प्राकृतिक भाषा में दिया।
- महावीर के अनुयायियों को मूलतः निरग्रंथ कहा जाता था।
- महावीर के प्रथम अनुयाई उनके दामाद जमाली बने।
- महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में विभाजित किया था।
- आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंदर्भ था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा और जैन धर्म का प्रथम थेरा या मुख्य उपदेशक हुआ।
जैन धर्म के त्रिरत्न-
- सम्यक दर्शन
- सम्यक ज्ञान
- सम्यक आचरण
त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पांच महाव्रतौं का पालन अनिवार्य है
- अहिंसा, सत्य,, अस्तेय, अपरिग्रह, एवं ब्रह्मचर्य।
- जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है
- जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है
- महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे
- जैन धर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतवाद है।
- जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्यदर्शन से ग्रहण किया है।
जैन धर्म मानने वाले कुछ राजा-
- उदयन बंदराजा
- चंद्रगुप्त मौर्य
- कलिंग नरेश खारवेल
- राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष चंदेल शासक
कुछ अन्य बातें
- मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था तथा मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से ही है।
- जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है।
- जैन धर्म के अनुयाई का काम भिक्षा मांगना वस्तुओं का त्याग सादा जीवन जीना ब्रह्मचर्य जीवन जोकि महावीर जी ने स्वीकारा था।
- जैन धर्म का व्यापारियों ने समर्थन किया था।
जैन धर्म का विभाजन
300 ईसा पूर्व में जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया
- श्वेताम्वर- श्वेत वस्त्र- स्थूलभद्र
- दिगाम्वर- वस्त्रों का त्याग- बद्रबाहू
परिशिस्तपरिवर्तन के अनुसार 1200 भिक्षु मगर छोड़कर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला चले गए हो दिगंबर बन जिसका नेता भद्रबाहु था।
जैन भिक्षुओं के बड़े-बड़े प्रतिमा श्रवणबेलगोला में है जोकि बाहुबली अथवा गोमतेश्वर कहलाते हैं।
इसका निर्माण 10 वीं सदी में चामुण्डर्या नहीं किया था।
महावीर बुद्ध ने संघ नामक संगठन बनाया था जहां पर घर त्याग कर लोग रहते थे।
संघ में रहने वालों के लिए नियम विनय पिटक में है।
संघ में स्त्री-पुरुष अलग-अलग रहते थे तथा बच्चों दासों और स्त्रियों के लिए उसमें आने के लिए उनके परिजनों से आदेश लेने पड़ते थे
महावीर की मृत्यु- महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 468 ईसापूर्व में बिहार राज्य के पावापुरी (राजवीर) में हो गई।
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