Rigved in Hindi: Rigvedic Period, Sloka & Quotes: From this page, you can read about Rigved in Hindi. यह जानकारी आपको हिंदी में जी गई है। तो इस पेज को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए और पोस्ट को और जानिए Rigvedic Period and its details only in Hindi.
ऋग्वैदिक काल के समय क्या क्या प्रचलन था, कैसा समाज था उस समय
- ऋग्वैदिक काल मुख्यतः एक कबीलाई व्यवस्था वाला शासन था जिसमें सैनिक भावना प्रमुख थी।
- राजा को गोमत भी कहा जाता था।
- वैदिक काल में राजतंत्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी। इसमें शासन का प्रमुख राजा होता था।
- राजा वंशानुगत तो होता था परन्तु जनता उसे हटा सकती थी। वह क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि जन विशेष का प्रधान होता था।
- राजा युद्ध का नेतृत्वकर्ता था। उसे कर वसूलने का अधिकार नही था। जनता द्वारा स्वेच्छा से दिए गए भाग एवं से उसका खर्च चलता था।
- सभा, समिति तथा विदथ नामक प्रशासनिक संस्थाएं थीं। अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
- समिति का महत्वपूर्ण कार्य राजा का चुनाव करना था। समिति का प्रधान ईशान या पति कहलाता था। विदथ में स्त्री एवं पुरूष दोनों सम्मलित होते थे। नववधुओं का स्वागत, धार्मिक अनुष्ठान आदि सामाजिक कार्य विदथ में होते थे।
- सभा श्रेष्ठ लोंगो की संस्था थी, समिति आम जनप्रतिनिधि सभा थी एवं विदथ सबसे प्राचीन संस्था थी। ऋग्वेद में सबसे ज्यादा बार उल्लेख विदथ का 122 बार हुआ है।
- सैन्य संचालन वरात, गण व सर्ध नामक कबीलाई संगठन करते थे।
ऋग्वैदिक काल की सामजिक स्थिति-
- ऋग्वेद के दसवें मंडल में चार वर्णों का उल्लेख मिलता है। वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी।
- समाज पितृसत्तात्मक था। संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी।
- परिवार का मुखिया ‘कुलप’ कहलाता था। परिवार कुल कहलाता था। कई कुल मिलकर ग्राम, कई ग्राम मिलकर विश, कई विश मिलकर जन एवं कई जन मिलकर जनपद बनते थे। अतिथि सत्कार की परम्परा का सबसे ज्यादा महत्व था।
- एक और वर्ग ‘ पणियों ‘ का था जो धनि थे और व्यापार करते थे।
- भिखारियों और कृषि दासों का अस्तित्व नहीं था।
- संपत्ति की इकाई गाय थी जो विनिमय का माध्यम भी थी।
- अस्प्रश्यता, सती प्रथा, परदा प्रथा, बाल विवाह, का प्रचलन नहीं था।
- शिक्षा एवं वर चुनने का अधिकार महिलाओं को था।
- विधवा विवाह, महिलाओं का उपनयन संस्कार, नियोग गन्धर्व एवं अंतर्जातीय विवाह प्रचलित
था। - वस्त्राभूषण स्त्री एवं पुरूष दोनों को प्रिया थे। जौ (यव) मुख्य अनाज था।
- शाकाहार का प्रचालन था। सोम रस (अम्रित जैसा) का प्रचलन था।
- * नृत्य संगीत, पासा, घुड़दौड़, मल्लयुद्ध, शुइकर आदि मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।
- अपाला, घोष, मैत्रयी, विश्ववारा, गार्गी आदि विदुषी महिलाएं थीं।
आर्थिक स्थिति-
- अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार पशुपालन एवं कृषि था।
- ज्यादा पालतू रखने वाले गोमत कहलाते थे। चारागाह के लिए ‘ उत्यति ‘ या ‘ गव्य ‘ शब्द काप्रयोग हुआ है।
- दूरी को ‘ गवयुती ‘, पुत्री को दुहिता (गाय दुहने वाली) तथा युद्धों के लिए ‘ गविष्टि ‘ का प्रयोग होता था।
- राजा को जनता स्वेच्छा से भाग नजराना देती थी।
- आवास घास-फूस एवं काष्ठ निर्मित होते थे।
- ऋण लेने एवं देने की प्रथा प्रचलित थी जिसे ‘ कुसीद ‘ कहा जाता था।
- बैलगाड़ी, रथ एवं नाव यातायात के प्रमुख साधन थे।
कृषि-
- सर्वप्रथम शतपथ ब्राम्हण में कृषि की समस्त प्रक्रियाओं का उल्लेख मिलता है।
- ऋग्वेद के प्रथम और दसम मंडलों में बुआई, जुताई, फसल की गहाई आदि का वर्णन है।
- ऋग्वेद में केवल यव (जौ) नामक अनाज का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के चौथे मंडल में कृषि का वर्णन है।
- परवर्ती वैदिक साहित्यों में ही अन्य अनाजों जैसे गेहूं (गोधूम), ब्रीही (चावल) आदि की चर्चा की गई है।
- काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा हल खींचे जाने का, अथर्ववेद में वर्षा, कूप एवं नाहर का तथा यजुर्वेद में हल का ‘ सीर ‘ के नाम से उल्लेख है। उस काल में कृत्रिम सिंचाई की व्यवस्था भी थी।
पशुपालन-
- पशुओं का चारण ही उनकी आजीविका का प्रमुख साधन था।
- गाय ही विनिमय का प्रमुख साधन थी।
- प्रिय पशु घोड़ा था
- ऋग्वैदिक काल में भूमिदान या व्यक्तिगत भू-स्वामित्व की धारणा विकसित नही हुई थी।
व्यापार-
- आरम्भ में अत्यन्त सीमित व्यापार प्रथा का प्रचालन था।
- व्यापार विनिमय पद्धति पर आधारित था।
- समाज का एक वर्ग ‘पाणी’ व्यापार किया करते थे।
- राजा को नियमित कर देने या भू-राजस्व देने की प्रथा नहीं थी।
- राजा को स्वेच्छा से भाग या नजराना दिया जाता था।
- पराजित कबीला भी विजयी राजा को भेंट देता था।
- अपने धन को राजा अपने अन्य साथियों के बीच बांटता था।
धातु एवं सिक्के-
- ऋग्वेद में उल्लेखित धातुओं में सर्वप्रथम धातू, अयस (ताँबा या कांसा) था।
- वे सोना (हिरव्य या स्वर्ण) एवं चांदी से भी परिचित थे।
- लेकिन ऋग्वेद में लोहे का उल्लेख नहीं है।
- ‘निष्क ‘ संभवतः सोने का आभूषण या मुद्रा था जो विनिमय के काम में भी आता था।
उद्योग-
- ऋग्वैदिक काल के उद्योग घरेलु जरूरतों के पूर्ति हेतु थे।
- बढ़ई एवं धूकर का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्व था।
- अन्य प्रमुख उद्योग वस्त्र, बर्तन, लकड़ी एवं चर्म कार्य था।
- स्त्रियाँ भी चटाई बनने का कार्य करतीं थीं।
धार्मिक स्थिति-
- आर्य एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
- यहाँ प्राकृतिक मानव के हित के लिये हो ईश्वर से कामना की जाती थी।
- वे मुख्या रूप से केवळ बर्ह्मान्ड के धारण करने वाळे एकमात्र परमपिता परमेश्वर के पूजक थे।
- वैदिक धर्म पुरूष प्रधान धर्म था। आरम्भ में स्वर्ग या अमरत्व की परिकल्पना नहीं थी।
- वैदिक धर्म पुरोहितों से नियंत्रित धर्म था। पुरोहित ईश्वर एवं मानव के बीच मध्यस्थ था।
- वैदिक देवताओं का स्वरुप महिमामंडित मानवों का है। ऋग्वेद में 33 देवो (दिव्य गुणो से युक्त पदार्थो) का उल्लेख है।
ऋग्वैदिक कालीन देवता
- इन्द्र- युद्ध का देवता
- अग्नि- देवता एवं मनुष्य के बीच मध्यस्थ
- वरुण- प्रथ्वी एवं सूर्य के निर्माता, समुद्र का देवता, विश्व के नियामक एवं शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात का कर्ता।
- घौ- आकाश का देवता (सबसे प्राचीन)
- सोम- वनस्पति का देवता
- उषा- प्रगति एवं उत्थान देवता
- आश्विन- विपत्तियों को हरनें बाला देवता।
- पूषन- पशुऔं का देवता।
- विष्णु- विश्व के संरश्रक एवं पालनकर्ता।
- मरूत- आंधी तूफान के देवता।
ऋग्वैदिक कालीन नदियां
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
क्रुभ | कुर्रम |
कुभा | काबुल |
विस्तता | झेलम |
आस्किनी | चिनाव |
परुषणी | रावी |
शतुद्रि | सतलज |
विपाशा | व्यास |
सदानीरा | गंड़क |
दृसध्दती | घग्घर |
गोमती | गोमल |
सुवस्तु | स्वात |
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